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The Tibetan Book of The Great Liberation

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The Tibetan Book of the Great Liberation is a storehouse of the most profound teachings handed down to us by

The life of Milarepa

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Here is the illustrated biography of Milarepa, the eleventh-century yogi and poet, who is the most renowned saint in Tibetan

आचार्यवसुबन्धुविरचितम अभिधर्मकोशम(स्वोपज्ञभाष्यसहितं स्फुटार्थव्याख्योपेतं च ) प्रथमो तथा द्वितीयो भागः The Abhidharmakosha & Bhashya of Acarya Vasubandhu with Sphutartha Commentary of Acarya Yashomitra (2 vols.)

1,700
प्रतीत्यसमुत्पाद सिद्धान्त बौद्ध दर्शन का मूल है। इस सिद्धान्त का सरलता से ज्ञान कराने हेतु भगवान् बुद्ध ने भिक्षुओं को अभिधर्मशास्त्र की देशना की थी।

गुह्यसमाजतन्त्रम तथागतगुह्यकम (हिन्दी अनुवाद सहित ), GuhyaSamajTantra or Tathagataguhyaka

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तत्कालीन बौद्ध धर्मानुयायी मूल बौद्ध धर्म से संतुष्ट नहीं थे। वे बुद्धत्वप्राप्ति की एक ऐसी सरलतम चामत्कारिक निश्चित प्रक्रिया चाहते थे जिसके द्वारा इसी जीवन में या उससे भी पूर्व ही निर्वाण प्राप्त किया जा सके। गुह्यसमाज ग्रन्थ ने उनकी इस आकांक्षा को पूर्णतः संतुष्ट किया. इसी कारण यहाँ ग्रन्थ, अत्यधिक लोकप्रिय हुआ।

पातिमोक्खसुत्त (भिक्खुपातिमोक्ख) हिंदी अनुवाद सहित ,The Pātimokkhasutta (Bhikkhupātimokkha) with Hindi translation

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बौद्ध-सङ्घ के लिए बुद्ध के मूल शिक्षापदों का संग्रह 'पातिमोक्खसुत्त' नाम से किया गया है। इस सुत्त को भी भिक्षु और भिक्षुणियों के लिए पृथक पृथक दो भागों में विभक्त किया गया -    १. भिक्खुपातिमोक्ख एवं २. भिक्खुनिपातिमोक्ख। इस पुस्तक में 'भिक्खुपातिमोक्ख' पर विचार किया गया है।

मज्झिमनिकायपालि -३ खण्डों में (१ मूलपण्णासकं २. मज्झिमपण्णासकमिता ३ . उपरिपण्णासकमिता ) हिन्दीअनुवाद सहित। The Majjhimanikayapali (3 volumes with Hindi Translation)

3,000
मज्झिमनिकायपालि का  बर्मा देश (म्यांमार) में हुए छट्ठ संगायन पर आधृत और श्रीलङ्का ,श्याम (थाईलैंड ) तथा पालि टैक्सट सोसाइटी लन्दन के संस्करणों का सहयोग लेकर सन १९५६ -६१ में ' पालि त्रिपिटक प्रकाशन मण्डल ' नालन्दा से प्रकाशित देवनागरी -संस्करण एवं आचार्य श्रीबुद्धघोष की अट्ठकथा का सहारा लेकर, स्वतंत्र रूप से किया गया हिंदी रूपान्तर।

महायानसूत्रालङ्कार: (आर्यमैत्रेयविरचितःअनेकविधसूची-पाठान्तरादिसंवलितः विज्ञानवादस्य प्रमुखो ग्रन्थः),Mahayanasutralankar by Aryamaitreya & Asanga

600
' महायानसूत्रालङ्कार ' विज्ञानवाद का सबसे प्रधान ग्रन्थ है। ' महायानसूत्रालङ्कार ' गुरु मैत्रयनाथ एवम उनके शिष्य आर्य असङ्गकी सम्मिलित कृति है। मूलभाग मैत्रेयनाथ का और टीकाभाग आर्य असङ्ग का कहा जाता है।

महावग्गपालि ( मूल पालि एवं हिंदी अनुवाद सहित ) The Mahavaggapali ( Pali Text with Hindi Translation )

1,600
भगवान बुद्ध के प्रवचन काल (पैंतालीस वर्षों ) में उनका अमूल्य उपदेशसंग्रह विषय - विभाजन करते हुए, इसे तीन भागों में संग्रह किया गया । यह संग्रह त्रिपिटक कहलाया ये तीन पिटक हैं - १. विनय पिटक २.सुत्तपिटक ३.अभिधम्मपिटक  

मिलिन्दपञ्हपालि Milindapanha Pali ( Qustions of Milinda )

1,200
मिलिन्दपञ्हपालि में, पालि साहित्य के पालि -त्रिपिटक से नाना ग्रंथों के नाम देकर पाँच निकायों,  अभिधम्मपिटक के सात ग्रंथों और उनके भिन्न-भिन्न अंगों के निर्देशपूर्वक अनेक अंश उद्धृत किये गये हैं

विनयपिटके चुल्लवग्गपालि (हिन्दी अनुवाद सहित), The Chullavaggapali with Hindi Translation

1,600
विनयपिटक का यह महत्वपूर्ण चुल्लवग्गपालि ग्रन्थ १२ खन्धकों (अध्यायों ) में विभक्त है । इन में, आदि के दश खन्धकों में, भगवान बुद्ध द्वारा भिक्षुओं को उपदिष्ट विनय (अनुशासन ) का वर्णन है। शेष दो (११ एवं १२) में समय समय पर त्रिपिटक की प्रामाणिकता के हेतु भिक्षुओं द्वारा की गयी दो सङ्गीतियों (त्रिपिटक का अक्षरशः मूलपाठ निर्धारण ) का वर्णन है।

सुत्तपिटके अंगुत्तरनिकायपालि – ४. खण्डों में,(१. एकक-दुक-तिकनिपात २.चतुक्क -पंचकनिपात ३.षट्क-सप्तक-अष्टकनिपात ४. नवक-दशक-एकादशक निपात ) हिन्दी अनुवादसहित।,Anguttaranikayapali 4 vols. with Hidi Translation. (Copy)

4,200
इस ग्रन्थ में भगवान् बुद्ध ने भिक्षुओं तथा जिज्ञासुओं को धर्म सम्बन्धी नियमों और आचारों का व्याख्यान आकर्षक शैली में किया है। इसमें गृहस्थों तथा श्रमणों के लिए पृथक पृथक अचार-नियमों का भी प्रतिपादन हुआ है।