Description
श्री सर्वात्मसम्भु इस ग्रन्थ के रचयिता हैं. संपादक के विचार से सर्वात्मासीवा और सर्वात्मसम्भु में कोई भेद नहीं है. दोनों नाम एक ही आचार्य के हैं. आप अघोर-शिव के गुरु थे. आपके द्वारा लिखित यह सिद्धांतप्रकाशिका सिद्धांत शैवमत का परिचायक है. इस छोटे-से ग्रन्थ में ग्रंथकार ने सिद्धांत शैवमत संमत ३६ तत्त्वों के बारे में, भारतीय वांग्मय के अगामा-संमत विभाग के बारे में तथा सिद्धांत शैवागम प्रतिपादित दीक्षा जैसे विषयों के बारे में बहुत सुन्दर ढंग से विवेचन किया है. ग्रन्थस्थ विषयों का समीक्षात्मक विवेचन संपादक ने अपनी प्रस्तावना में विस्तार से किया है.
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