Buddhism
A Buddhist Spectrum
A History of Pali Literature
Where the Buddha Walked A Companion to the Buddhist Places of India (HB)
Where the Buddha Walked A Companion to the Buddhist Places of India (PB)
गुह्यसमाजतन्त्रम तथागतगुह्यकम (हिन्दी अनुवाद सहित ), GuhyaSamajTantra or Tathagataguhyaka
तत्कालीन बौद्ध धर्मानुयायी मूल बौद्ध धर्म से संतुष्ट नहीं थे। वे बुद्धत्वप्राप्ति की एक ऐसी सरलतम चामत्कारिक निश्चित प्रक्रिया चाहते थे जिसके द्वारा इसी जीवन में या उससे भी पूर्व ही निर्वाण प्राप्त किया जा सके। गुह्यसमाज ग्रन्थ ने उनकी इस आकांक्षा को पूर्णतः संतुष्ट किया. इसी कारण यहाँ ग्रन्थ, अत्यधिक लोकप्रिय हुआ।
पालिव्याकरण (बालावतार) (हिन्दी अनुवाद सहित ), Pali Grammar (Balavatara) of Bhikkhu Dharmakitti with Hindi Translation
पालि में लिखे गये जितने भी व्याकरण ग्रन्थ हैं, वे तीन परम्पराओं में विभक्त हैं। ये परम्पराएँ पालि-व्याकरणों के पठन-पाठन की अपनी परम्पराएँ हैं। ये परम्पराएँ हैं : १. कच्चान, २. मोग्गल्लान और ३.सद्द्नीति।
इसी कच्चान परंपरा के अन्तर्गत "बालावतार" है। "बालावतार" प्रारम्भिक पाठकों के लिए बहुत ही उपयोगी और महत्वपूर्ण ग्रन्थ है।
विनयपिटके चुल्लवग्गपालि (हिन्दी अनुवाद सहित), The Chullavaggapali with Hindi Translation
विनयपिटक का यह महत्वपूर्ण चुल्लवग्गपालि ग्रन्थ १२ खन्धकों (अध्यायों ) में विभक्त है । इन में, आदि के दश खन्धकों में, भगवान बुद्ध द्वारा भिक्षुओं को उपदिष्ट विनय (अनुशासन ) का वर्णन है।
शेष दो (११ एवं १२) में समय समय पर त्रिपिटक की प्रामाणिकता के हेतु भिक्षुओं द्वारा की गयी दो सङ्गीतियों (त्रिपिटक का अक्षरशः मूलपाठ निर्धारण ) का वर्णन है।
सुत्तपिटके अंगुत्तरनिकायपालि – ४. खण्डों में,(१. एकक-दुक-तिकनिपात २.चतुक्क -पंचकनिपात ३.षट्क-सप्तक-अष्टकनिपात ४. नवक-दशक-एकादशक निपात ) हिन्दी अनुवादसहित।,Anguttaranikayapali 4 vols. with Hidi Translation. (Copy)
सुत्तपिटके खुद्दकनिकाये थेरगाथापालि, थेरीगाथापालि (हिन्दी-अनुवादसहित ) The Theragathapali Therigathapali (Khuddakanikayapali) with Hindi Translation
थेरगाथा एवं थेरीगाथा -दोनों ही ग्रंथ, खुद्दकनिकाय में परिगणित १५ ग्रंथों में अतिशय महत्वपूर्ण है।आचार्य बुद्धघोष ने इन दोनों ग्रथों का खुद्दकनिकाय ग्रन्थसमूह में अष्ठम एवं नवम स्थान निर्धारित किया है। इन दोनों ग्रंथों में क्रमशः बुद्धकाल के भिक्षुओं तथा भिक्षुणियों के पद्य बद्ध जीवन-संस्मरण है। काव्यसाहित्य एवं दर्शन के दृष्टि से इन दोनों ग्रंथों का स्थान धम्मपद एवं सुत्तनिपात के बाद ही है।
सुत्तपिटके खुद्दकनिकाये धम्मपदपालि (हिन्दी-संस्कृत अनुवाद सहित) , The Dhammapadapali with Hindi & Sanskrit Translation.
सुत्तपिटके खुद्दकनिकाये सुत्तनिपातपालि (हिन्दी-अनुवाद सहित ), The Suttanipatapali (khuddakanikayapali) with Hindi Translation.
बौद्धधर्म की परम्परा में सुत्तनिपातपालि उतना ही लोकप्रिय माना गया है जितना धम्मपदपालि ; मौलिक बौद्ध धर्म एवं बौद्ध साहित्य की दृष्टि से इस ग्रन्थरत्न का बुद्धकाल से ही उच्चतम स्थान माना जाता है।
सम्राट अशोक ने अपने भब्रुशिला लेख (बैराठ,जयपुर,राजस्थान ) में बुद्धोपदिष्ट जिन महत्वशाली सात सूत्रों का भिक्षुओं के लिये अनिवार्यरूप से प्रतिदिन स्वाध्याय घोषित किया है उन में से तीन प्रमुख सूत्र सुत्तनिपात ग्रन्थ से ही लिये गये हैं।
आचार्यवसुबन्धुविरचितम अभिधर्मकोशम(स्वोपज्ञभाष्यसहितं स्फुटार्थव्याख्योपेतं च ) प्रथमो तथा द्वितीयो भागः The Abhidharmakosha & Bhashya of Acarya Vasubandhu with Sphutartha Commentary of Acarya Yashomitra (2 vols.)