Description
रचनाकार ने शिव को एक ‘अद्भुत देवता’ के रूप में प्रस्तुत किया है. दूर से लगता है कोई देव-पुरुष है, लेकिन निकट जाने पर लगता है कोई नहीं है. वह महत देवता या महादेव है. शब्द-संयोजन की दृष्टि से वह इस ब्रह्मांड का ही नहीं बल्कि एंटी ब्रह्माण्ड का भी नियंता है और अर्थ-गरिमा की दृष्टि से वह किसी कल-परिधि में नहीं, बल्कि कल का संपूर्ण आयाम स्वयं शिव में निवास करता है. वे केवल योगेश्वर नहीं अपितु परम योगीश है.
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