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योगिनीहृदयम

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योगिनीह्रदयम भगवती त्रिपुरसुन्दरी की अंतर वरिवस्या का प्रतिपादक ग्रन्थ है. इसमें तीन पटल हैं: चक्रसंकेत, मन्त्रसङ्केत और पूजासंकेत. प्रथम पटल में भगवती के अवतार-स्थान श्रीचक्र का आध्यात्मिक स्वरुप प्रदर्शित किया गया है की किस प्रकार विसटीर्ना तत्त्व विश्वमय बन जाता है. शक्ति के अम्बिकादि तथा शान्तादि चार प्रकारों, वाणी के पारा आदि चार भेड़ों, चार पीठों, चार लिंगों, संख्या-सम्मत २५ तत्त्वों तथा समस्त

विज्ञान भैरव (Sanskrit-Hindi)

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विज्ञान भैरव तंत्रसाधना का अद्वितीय ग्रन्थ है जिसकी व्याख्या आचार्य द्विवेदी जी ने की इस पुस्तक में योग तंत्र एवं साधना का अद्वितीय संगम है तथा उसके सही अर्थ की व्याख्या है. 'इस ग्रन्थ में आचार्य श्री कहते है- "विज्ञानभैरव प्रश्न-प्रतिवचनात्मक शैली में लिखा गया एक अगम ग्रन्थ है. प्रश्न देवी अथवा भैरवी करती है और उसके उत्तर भगवन भैरव देते हैं.